Sri Durga Chalisa – श्री दुर्गा चालीसा

P Madhav Kumar

 नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।

नमो नमो अंबे दुःख हरनी ॥ १ ॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥ २ ॥

शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥ ३ ॥

रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४ ॥

तुम संसार शक्ति लय कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥ ५ ॥

अन्नपूर्णा हुयि जग पाला ।
तुम ही आदि सुंदरी बाला ॥ ६ ॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥ ७ ॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८ ॥

रूप सरस्वती का तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥ ९ ॥

धरा रूप नरसिंह को अंबा ।
परगट भयि फाड के खंबा ॥ १० ॥

रक्षा कर प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥ ११ ॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२ ॥

क्षीरसिंधु में करत विलासा ।
दयासिंधु दीजै मन आसा ॥ १३ ॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥ १४ ॥

मातंगी धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुखदाता ॥ १५ ॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६ ॥

केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥ १७ ॥

कर में खप्पर खडग विराजे ।
जाको देख काल डर भाजे ॥ १८ ॥

तोहे कर में अस्त्र त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥ १९ ॥

नगरकोटि में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँ लोक में डंका बाजत ॥ २० ॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥ २१ ॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥ २२ ॥

रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥ २३ ॥

पडी भीढ संतन पर जब जब ।
भयि सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४ ॥

अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब कहें अशोका ॥ २५ ॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥ २६ ॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥ २७ ॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लायि ।
जन्म मरण ते सौं छुट जायि ॥ २८ ॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न होयि बिन शक्ति तुम्हारी ॥ २९ ॥

शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीत सब लीनो ॥ ३० ॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥ ३१ ॥

शक्ति रूप को मरम न पायो ।
शक्ति गयी तब मन पछतायो ॥ ३२ ॥

शरणागत हुयि कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदंब भवानी ॥ ३३ ॥

भयि प्रसन्न आदि जगदंबा ।
दयि शक्ति नहिं कीन विलंबा ॥ ३४ ॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥ ३५ ॥

आशा तृष्णा निपट सतावें ।
रिपु मूरख मॊहि अति दर पावैं ॥ ३६ ॥

शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥ ३७ ॥

करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला । ३८ ॥

जब लगि जियूँ दया फल पावूँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनावूँ ॥ ३९ ॥

दुर्गा चालीसा जो गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४० ॥

देवीदास शरण निज जानी ।
करहु कृपा जगदंब भवानी ॥


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