दाता नहीं है श्री राम के जैसा,
सेवक नहीं है हनुमान के जैसा ||
आंख उठा कर देखा जग में सारा जगत भिखारी,
काम क्रोध मद लोह मोह में लिपटे सब नर नारी,
पाप नहीं कोई अभिमान के जैसा,
दाता नहीं है श्री राम के जैसा…
पड़ कर देखो रामायण बस एक ही बात सिखाये,
वो नर पार उतर जाए जो अपना फ़र्ज़ निभाए,
धर्म नहीं मानव सामान के जैसा,
दाता नहीं है श्री राम के जैसा…
सुख चाहो तो सुमिरन करलो राम प्रभु का प्यारे,
संजू सबको जाना होगा इक दिन हाथ पसारे,
तप नहीं हरी गुणगान के जैसा,
दाता नहीं है श्री राम के जैसा…
सेवक नहीं है हनुमान के जैसा,
दाता नहीं है श्री राम के जैसा ||