यजनसुपूजितयोगिवरार्चित यादुविनाशक योगतनो
यतिवरकल्पितयन्त्रकृतासनयक्षवरार्पितपुष्पतनो ।
यमनियमासनयोगिहृदासनपापनिवारणकालतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ १ ॥
मकरमहोत्सव मङ्गलदायक भूतगणावृतदेवतनो
मधुरिपुमन्मथमारकमानित दीक्षितमानसमान्यतनो ।
मदगजसेवित मञ्जुलनादकवाद्यसुघोषितमोदतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ २ ॥
जय जय हे शबरीगिरिनायक साधय चिन्तितमिष्टतनो
कलिवरदोत्तम कोमलकुन्तल कञ्जसुमावलिकान्ततनो ।
कलिवरसंस्थित कालभयार्दित भक्तजनावनतुष्टमते
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ३ ॥
निशिसुरपूजनमङ्गलवादनमाल्यविभूषणमोदमते
सुरयुवतीकृतवन्दन नर्तननन्दितमानसमञ्जुतनो ।
कलिमनुजाद्भुत कल्पितकोमलनामसुकीर्तनमोदतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ४ ॥
अपरिमिताद्भुतलील जगत्परिपाल निजालयचारुतनो
कलिजनपालन सङ्कटवारण पापजनावनलब्धतनो ।
प्रतिदिवसागतदेववरार्चित साधुमुखागतकीर्तितनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ५ ॥
कलिमलकालन कञ्जविलोचन कुन्दसुमानन कान्ततनो
बहुजनमानसकामसुपूरण नामजपोत्तम मन्त्रतनो ।
निजगिरिदर्शनयातुजनार्पितपुत्रधनादिकधर्मतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ६ ॥
शतमखपालक शान्तिविधायक शत्रुविनाशक शुद्धतनो
तरुनिकरालय दीनकृपालय तापसमानस दीप्ततनो ।
हरिहरसम्भव पद्मसमुद्भव वासवशम्भवसेव्यतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ७ ॥
ममकुलदैवत मत्पितृपूजित माधवलालितमञ्जुमते
मुनिजनसंस्तुत मुक्तिविधायक शङ्करपालित शान्तमते ।
जगदभयङ्कर जन्मफलप्रद चन्दनचर्चितचन्द्ररुचे
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ८ ॥
अमलमनन्तपदान्वितरामसुदीक्षित सत्कविपद्यमिदं
शिवशबरीगिरिमन्दिरसंस्थिततोषदमिष्टदमार्तिहरम् ।
पठति शृणोति च भक्तियुतो यदि भाग्यसमृद्धिमथो लभते
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ९ ॥
इति श्रीरामसुदीक्षितसत्कवि कृतं श्री शबरीगिरीशाष्टकम् ।