Ayyappa Swamy 108 Saranu Gosha in Hindi

P Madhav Kumar

 

॥ श्री अय्यप्प शरणुघोष ॥

ओं श्री स्वामिये शरणं अय्यप्पा ॥

हरिहर सुतने

कन्निमूल गणपति भगवाने

शक्ति वडिवेलन् सोदरने

मालिकैप्पुरत्तु मञ्जम्म देवि लोकमातावे

वावरन् स्वामिये

करुप्पन्न स्वामिये

पेरिय कडुत्त स्वामिये

तिरिय कडुत्त स्वामिये

वन देवतमारे ॥ १० ॥


दुर्गा भगवति मारे

अच्चन् कोविल् अरसे

अनाध रक्षगने

अन्नदान प्रभुवे

अच्चं तविर्पवने

अम्बलतु अरसे

अभय दायकने

अहन्दै अलिप्पवने

अष्टसिद्धि दायगने

अन्द्मोरै आदरिक्कुम् दैवमे ॥ २० ॥


अलुथयिल् वासने

आर्यङ्गावु अय्यावे

आपद्बान्धवने

आनन्द ज्योतिये

आत्म स्वरूपिये

आनैमुखन् तम्बिये

इरुमुडि प्रियने

इन्नलै तीर्पवने

इह पर सुख दायकने

हृदय कमल वासने ॥ ३० ॥


ईडिला इन्बम् अलिप्पवने

उमैयवल् बालगने

ऊमैक्कु अरुल् पुरिन्दवने

ऊल्विनै अकट्रुवोने

ऊक्कम् अलिप्पवने

एन्गुम् निरैन्दोने

एनिल्ला रूपने

एन् कुल दैवमे

एन् गुरुनाथने

एरुमेलि वालुम् किरात -शास्तावे ॥ ४० ॥


एन्गुम् निरैन्द नाद ब्रह्ममे

एल्लोर्कुम् अरुल् पुरिबवने

एट्रुमानूरप्पन् मगने

एकान्त वासिये

एलैक्करुल् पुरियुम् ईसने

ऐन्दुमलै वासने

ऐय्यन्गल् तीर्पवने

ओप्पिला माणिक्कमे

ओङ्कार परब्रह्ममे

कलियुग वरदने ॥ ५० ॥


कन्कन्ड दैवमे

कम्बन्कुडिकुडैय नाथने

करुणा समुद्रमे

कर्पूर ज्योतिये

शबरि गिरि वासने

शत्रु संहार मूर्तिये

शरणागत रक्षगने

शरण घोष प्रियने

शबरिक्कु अरुल् पुरिन्दवने

शम्भुकुमारने ॥ ६० ॥


सत्य स्वरूपने

सङ्कटम् तीर्पवने

सञ्जलम् अलिप्पवने

षण्मुख सोदरने

धन्वन्तरि मूर्तिये

नम्बिमोरै काक्कुम् दैवमे

नर्तन प्रियने

पन्धल राजकुमारने

पम्बै बालकने

परशुराम पूजितने ॥ ७० ॥


भक्तजन रक्षगने

भक्तवत्सलने

परमशिवन् पुत्रने

पम्बा वासने

परम दयालने

मणिकन्द पोरुले

मकर ज्योतिये

वैक्कत्तप्पन् मगने

कानक वासने

कुलत्तु पुलै बालकने ॥ ८० ॥


गुरुवायूरप्पन् मगने

कैवल्य पद दायकने

जाति मत भेदम् इल्लदवने

शिवशक्ति ऐक्य स्वरूपने

सेविप्पवर्कु आनन्द मूर्तिये

दुष्टर् भयम् नीक्कुवोने

देवादि देवने

देवर्गल् तुयरम् तीर्थवने

देवेन्द्र पूजितने

नारायणन् मैन्दने ॥ ९० ॥


नेय्यभिषेक प्रियने

प्रणव स्वरूपने

पाप संहार मूर्तिये

पायसन्न प्रियने

वन्पुलि वाहनने

वरप्रदायकने

भागवतोत्तमने

पोन्नम्बल वासने

मोहिनि सुतने

मोहन रूपने ॥ १०० ॥


विल्लाडि वीरने

वीरमणि कण्ठने

सद्गुरु नाथने

सर्व रोगनिवरकने

सच्चिदानन्द स्वरूपने

सर्वाभीष्ठ दायकने

शाश्वतपदम् अलिप्पवने

पदिनेट्टाम् पडिक्कुडयनाधने ॥ १०८ ॥

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