गिरितनयासुत गाङ्गपयोदित गन्धसुवासित बालतनो
गुणगणभूषण कोमलभाषण क्रौञ्चविदारण कुन्दतनो ।
गजमुखसोदर दुर्जयदानवसङ्घविनाशक दिव्यतनो
जय जय हे गुह षण्मुख सुन्दर देहि रतिं तव पादयुगे ॥ १ ॥
प्रतिगिरिसंस्थित भक्तहृदिस्थित पुत्रधनप्रद रम्यतनो
भवभयमोचक भाग्यविधायक भूसुतवार सुपूज्यतनो ।
बहुभुजशोभित बन्धविमोचक बोधफलप्रद बोधतनो
जय जय हे गुह षण्मुख सुन्दर देहि रतिं तव पादयुगे ॥ २ ॥
शमधनमानित मौनिहृदालय मोक्षकृदालय मुग्धतनो
शतमखपालक शङ्करतोषक शङ्खसुवादक शक्तितनो ।
दशशतमन्मथ सन्निभसुन्दर कुण्डलमण्डित कर्णविभो
जय जय हे गुह षण्मुख सुन्दर देहि रतिं तव पादयुगे ॥ ३ ॥
गुह तरुणारुणचेलपरिष्कृत तारकमारक मारतनो
जलनिधितीरसुशोभिवरालय शङ्करसन्नुत देवगुरो ।
विहितमहाध्वरसामनिमन्त्रित सौम्यहृदन्तर सोमतनो
जय जय हे गुह षण्मुख सुन्दर देहि रतिं तव पादयुगे ॥ ४ ॥
लवलिकया सह केलिकलापर देवसुतार्पित माल्यतनो
गुरुपदसंस्थित शङ्करदर्शित तत्त्वमयप्रणवार्थविभो ।
विधिहरिपूजित ब्रह्मसुतार्पित भाग्यसुपूरक योगितनो
जय जय हे गुह षण्मुख सुन्दर देहि रतिं तव पादयुगे ॥ ५ ॥
कलिजनपालन कञ्जसुलोचन कुक्कुटकेतन केलितनो
कृतबलिपालन बर्हिणवाहन फालविलोचनशम्भुतनो ।
शरवणसम्भव शत्रुनिबर्हण चन्द्रसमानन शर्मतनो
जय जय हे गुह षण्मुख सुन्दर देहि रतिं तव पादयुगे ॥ ६ ॥
सुखदमनन्तपदान्वित रामसुदीक्षित सत्कविपद्यमिदं
शरवण सम्भव तोषदमिष्टदमष्टसुसिद्धिदमार्तिहरम् ।
पठति शृणोति च भक्तियुतो यदि भाग्यसमृद्धिमथो लभते
जय जय हे गुह षण्मुख सुन्दर देहि रतिं तव पादयुगे ॥ ७ ॥
इति श्रीअनन्तरामदीक्षित कृतं षण्मुख षट्कम् ॥